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मैंने देखा है

मैंने देखा है ख़ुद को

किसी बच्चे सा मुस्काते
उजियारे से भागते
अंधेरों में छिप जाते 
अवसाद में हारते हुए 
रातभर जागते हुए
__________
मैंनेदेखा है ख़ुद को 
ख़ुद से लड़ते
 कभी सबसे झगड़ते
ज़्यादा मरते कम जीते हुए 
घूंट घूंट क़तरे आसू पीते हुए
मैं ने देखा है ख़ुद को 
__________
सबसे छुपते हुए
अकेले में सिसकते 
सबसे बचते 
दिवा-स्वप्न रचते
सत्य को नकारते हुए
झूठे को अपनाते हुए
मैंने देखा है ख़ुद को 
__________
हताशा में चीख़ते
डरकर आँख मींचते
किसी कोने में दुबकते हुए
नींद से जगकर सुबकते हुए
मैंने देखा है ख़ुद को
_________
किसी तितली सा उड़ते
किसी जुगनू सा चमकते
ख़ुद के पंख कतरते
अंधेरों में उतरते 
ख़ुद ही का समर्थक बनते
लोगों को नकारते
ख़ुद की आलोचना करते
मैंने देखा है ख़ुद को 
_________

मैंने देखा है 
माँ को धैर्य से सामना करते
परिस्थितिसाँ विषम आने पर मेरा
बाबा-सा बनने की कामना करते
शब्दों को जोड़-तोड़ते 
पथ नये-नये खोजते
फिर उन्हीं में खो जाते 
__________
ख़ुद से मिलते 
ख़ुद पर इतराते
ख़ुद से कतराते
मैंने देखा है ख़ुद को 
©अलमास

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1 Comments

kapil sharma

12-May-2022 01:25 AM

👍👍👍

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